वो बचपन कीअमीरी न जाने कहां खो गई
जब पानी में हमारे भी जहाज चलते थे…
Wo Bachpan Ki Amiri Na Jane
Kahan Kho Gai Jab Pani Mein
Humare Bhi Jahaz Chalte They!
वो क्या दिन थे…
मम्मी की गोद और पापा के कंधे,
न पैसे की सोच और न लाइफ के फंडे,
न कल की चिंता और न फ्यूचर के सपने,
अब कल की फिकर और अधूरे सपने,
मुड़ कर देखा तो बहुत दूर हैं अपने,
मंजिलों को ढूंडते हम कहॉं खो गए,
न जाने क्यूँ हम इतने बड़े हो गए,
गाँवो में है
फटेहाल नौनीहाल
व भूखा किसान
फिर भी हुक्म के तामील में
लिख रहे मेरा भारत महान
बचपन का वो दिन और सुहानी रातें
चूरन की गोलियां हंसी मजाक की बातें
ना कोई फासले दिल में ना रिश्तो की दीवार,
होती थोड़ी शैतानियां थोड़ी सी तकरार
ना कोई चिंता भविष्य की ना कोई परवाह
ऐ खुदा ले चल मुझे फिर से उसी राह
सावन के झूले, फूलों की वह डाल,
हंसते मुस्कुराते गुजरता था बचपन का हर साल
खबर ना थी धूप की ना शाम का ठिकाना था
बारिश में कागज की नाव और पानी का बौछारा था,
जिंदगी में आगे निकलने की ना होड़ थी
हाथ में पतंग का मांजा और सफेद डोर थी,
वो ताजी हवा,मीठा पानी और वो खुशहाली
वो गन्ने का रस, आम की कैरियां और वो हरियाली
इंद्रधनुष के प्यारे रंग और ध्रुव तारा था
सोच कर देखो जरा बचपन कितना प्यारा था।
वो भी क्या दिन थे
जब हम स्कूल से आते
भूख की रट लगाते थे
वो भी क्या दिन थे
जब हम बिन सुर ताल
बेखौफ गाते थे
वो भी क्या दिन थे
जब हम होमवर्क ना कर पाने के
सौ सौ बहाने बनाते थे
वो भी क्या दिन थे
जब हम कुल्फी
टपका टपका कर खाते थे
वो भी क्या दिन थे
जब हम अपनी गुड़िया की
शादी रचाते थे
वो भी क्या दिन थे
जब हम रातों को चैन से
लोरी सुन सो जाते थे
वो भी क्या दिन थे