व्यक्ति जो चाहे बन सकता है,
यदि, विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करें।
श्री कृष्णा
हे श्याम…
सपने में आकर नींदिया उड़ा जाते हो ,
खुलती हैं आँखें तो गायब हो जाते हो ..
ये कैसी अदा है आपकी मेरे प्यारे ,
खुद तो मुस्कुराते हो ,
हमें पागल बना जाते हो ।।
प्यार राधा ने भी किया,
मोहब्बत मीरा ने भी निभाई थी|
पर दोनों करते भी तो क्या,
किस्मत की लकीरों में तो रुक्मणि श्याम को लिखवाकर आयी थी||
तोरे नैनों ने मन मोह लिया जो मेरा,
कोरे दिल में लिख लिया है अब नाम तेरा!
ओ कान्हा! तूने कैसी प्रीत लगाई?
के फैली सारे ब्रज में,मोरे प्रेम की पुरवाई ।
“If you lost everything
Still you have krishna
With you and that is
Enough to start over Again”
दिन मेरे यूँ कट रहे,
तोसे मिलन की आस में,
कृष्णा आने में देर न करना,
भटक रहे ज़ज्बात मेरे,
पीर है दिल की मीरा जैसी,
मिलन है मन का राधा सा,
हर रूप मे है कुछ ‘पूरा’ सा,
हर रूप में है कुछ ‘आधा’ सा,,
इस तरह मन मे समा गये गिरधर मोरे,
कि अब सुख चैन उड गया संग तोरे।
मैं तो सुद खो बेठी ,
जब से सूरत देरी देखी ॥
पूछते हैं लोग
कि कविताएं लिखकर
आख़िर मैंने क्या पाया है?
क्या पाया है?
ये पूछिये क्या क्या नहीं पाया है!
शकुन, जुबान, अल्फाज़,
सदाकत ये सब
कविताओं ने मुझे सिखाया है l
अदब, अजमत, रहमत, और मुहब्बत
सब तो कविताओं ने मुझे सिखाया है
क्या क्या गिनाऊ साहब
कि कविताएं लिखकर मैंने क्या पाया है l
रुक जाएगी हाथ हमारी लिखकर
थक जाएगी जुबान हमारी
कि कविताएं से मैंने क्या पाया है
य़ह बताकर
सुन लो ओ पूछने वालों
मैं कविताओ से चिरंजीवी शब्द पाया हूँ
अब य़ह सवाल दुहराना मत किसी कवि से
ज़वाब मिल गया हो तो
देना दुआ दिल से
तब तो कहता है जग सारा
मनुष्य होना भाग्य हैं और
कवि होना सौभाग्य
कवि जितेन्द्र कुमार गुप्ता
रंग तेरे प्रेम का ऐसा जो चढ़ जाए
पिया तेरे प्रेम में ये दीवानी जो हो जाये
हो मतवाली चाल संग ग्वालों के साथ चल
माखन की मटकी संग साथ जो चली जाये,
कान्हा के प्रेम संग गोपियों के रास संग
नैनों से नैन मिले बंसी की धुन सुन
नाचे जो ग्वाल पाल ब्रज की गोपियों संग
मीरा के प्रेम संग ,राधा के प्रेम संग
गोपियों के प्रेम संग, ग्वालो के प्रेम संग
बंसी की धुन सुन नाचे ब्रज के सखी संग
रंग तेरे प्रेम का ऐसा जो चढ़ जाये….
ये दीवानी कृष्ण प्रेम में डूब जाए….
यमुना का जल तुम यदि बनो,
मैं तुम्हे आचमन कर जाऊ,
यदि राधा बन इठलाओ तुम,
तो रास रचाने न जाऊ,
तुम मेरी सुध में बैठी हो,
मैं तुम में खोया रहता हूँ,
दिन और रात का होश नहीं,
मैं सुध-बुध खोया रहता हूँ,
है मेरी भी बस यही कामना,
तेरा दीवाना हो जाऊ,
तू मेरी प्रयसी बने सदा,
मैं तेरा कृष्णा कहलाऊ………।।
तुम्हे प्यास लगेगी जो कान्हा,
यमुना का जल बन जाऊंगी।
कभी रास रचाने तुम आओ,
मैं राधिका बन इठलाऊंगी।
मैं तो सुध बुध खो बैठी हूं,
एक याद तुम्ही अब हो गिरिधर।
तेरी प्रीत के रस में घुलकर मैं,
तेरी दिवानी कहलाऊंगी ।।