उनके चेहरे पर मुस्कान,
और आँखों में चमक छा गई।
जब सर्द ठिठुरती शाम को,
बदन पर उनके कम्बल आ गई।।
Unke Chehre Par Muskaan
Aur Ankho Mein Chamak Chha Gai,
Jab Sard Thiturti Shaam Ko,
Badan Par Unke Kambal Aa Gai!
जब पूछा गया मुझसे, “कैसा लगता है सर्दी का मौसम तुम्हे?”
इतना ही कह पाया मैं – “दुशवार रात, ख़ाली सड़क, मैं
और फुटपाथ पर बेघर शक़्स के चूल्हे का जलता अलाव ।”
कलयुग का ज़माना तो देखो,
ये सूरज की रोशनी आती तो हैं
लेकिन इस सर्द मौसम में
बदन फिर भी थरथरा रहा है!
कपाट में रखे हैं, आज भी वो सारे ख़त,
जो लिखे थे कभी तूने, बस मेरे नाम संभाल के रखे हैं,
वो सारे ख़त, आयेंगे इन सर्दियों में,
ये आग सेकने के मेरे काम!
Sard bad gayi apna khayal rakhiye
Dastane , moffler , shoes pahan k rahiye
Adrak wali chay ka maja lete rahiye
Aur ha ghar se bahar niklane se pahle
Garm kapde sath rakhiye
Khane pine ka acche se khayal rakhiye
Sard bad gayi apna khayal rakhiye
Purane ya naye jo bhi ho sake sardi k kapde garibo ko dan kariye
Ye suchana janhit me jari😃☺😃😃
हल्की हल्की सी सर्द हवा
और जरा जरा सा दर्द
अंदाज अच्छा है
ए नवम्बर तेरे आने का।
याद हैं सर्द हवाओं के मौसम में तुमसे मिलने के बहाने ..
याद हैं तुमको भी छत से झांकते झरोखों के ताने बाने !!
Kambakht thand ne kuch Yun kiya:
Ab dhone ko mann nahi karta,
Ab nahane ko mann nahi karta,
Ab ghoomne ko mann nahi karta,
Ab jag soona soona lage bas rajai hi apni si laage 😉
इस सर्द मौसम में,
जुदाई की चादर तो औढ़ ली मैने
पर उस यादो के तकीये का क्या करू
उस सुबह की धूप में आगे चल तो लु,
लेकिन इस कोहरे का क्या करू!
जब सर्दी में माँ कम्बल निकलवाती है संदूक से
उस समय तुम्हारी गरमाहट बहुत याद आती है
सुबह – सुबह कड़क चाय☕
सर्दी की कंपकपाने वाली ठंड🗣
और उसका यूँ अंगड़ाई लेना💃
कसम से तीनों ही लाजवाब है👌
इस सर्द मौसम की रात में,
वो हमारे संग बिताए लम्हों को जला रहे थे
और
हम यहां उनके साथ बनी यादों से स्वेटर बुन रहे थे,
शरीर को गर्म रखने के लिए
ठंड का आलम कुछ इस कदर पसर गया
आज आसमाँ में आफताब भी महताब बनकर रह गया !!
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बहुत ठंड है दोस्तों… चाय वगरह का इंतजाम करो यार…🤧
देखो सर्दी की एक ये भी बात
नागवार है,
के रात बहुत हो
फिर भी नींद ना आए
और आ जाता है तब
एक खूबसूरत ख़याल
तो बिस्तर छोड़ कर
कलम उठाने में सुस्ती जो होती है,
फिर एक और नायाब
तराशा हुआ ख़याल,
सुबह की तेज रोशनी में
कहीं गुम जाता है ।
तुम अब कुछ कुछ धुंध से लगने लगे हो…
जब कुछ नहीं दिखता है
पर चलना अच्छा लगता है
रात होते होते
गहरी होती जाती धुंध की चादर
कभी बीमार करती
कभी बच्चा बना देती
सुबह हर जगह अपने निशां छोड़ जाती
धुंध से मुलाकात भी कभी कभी होती है
हाँ तुम भी धुंध हो….