मर गई इंसानियत मगर इंसान जिंदा है
जिस्म को नोच खाने वाला वो शैतान जिंदा है
रोज एक द्रोपदी की लूटती है आबरू
आज भी कही न कही वो दुशासन जिंदा है..!!
#Justice_For_All_Girls #Hang_Rapist
Mar Gai Insaniyat Magar Insaan Zinda Hai,
Jism Ko Noch Khane Wala Wo Shaitan Zinda Hai,
Roj Ek Dropadi Ki Lootti Hai Abru…
Aaj Bhi Kahi na Kahi Wo Dushasan Zinda Hai!!
घिन सी आती है आज उन पर जो बलात्कार को भी सियासी और साम्प्रदायिकता के रंग में रंग देते हैं,
उन बच्चियों के साथ हुई विभत्सता के ज़ख्मों में भी भगवा या हरा रंग ढूंढ लेते हैं ।
जब तक पीड़िता और आरोपी विपरीत धर्मों के ना हो,
तब तक कोई खबर नहीं है छपती,
क्योंकि दो समुदायों में आपस में क्लेश कराए बिना राजनीतिक रोटियां नहीं सिकती।
काश कभी कोशिश की होती उन मासूमों की चीखें सुनने की,
अगर फुर्सत मिली होती तुम्हें धर्म से परे कुछ देखने की ।।
एक बार मोमबत्ती की जगह
रेपिस्ट को जलाकर तो देखो
शायद रेप कम हो जायें!
हर बार बेटियां हीं जलें जरूरी तो नहीं…😓
कुछ पल के ही बाद
पूरे शरीर पर उसके खून था
तेरे पास वाले मकान में ही रहती थी
हर सवेरे तुझे अंकल कहती थी
नहीं जानती थी
परिचितों के भेष में तू
एक दरिंदा मशहूर था
मीठी बातों के फेर में आ गयी
और हैवानो का शिकार हो गयी
–मेरी सियाही✍
क्या बिगाड़ा था उसने
जो तेरी दरिंदगी का वो
यूँ शिकार हो गयी
तीन ही साल की तो है वो
जिसके सामने देखो फ़िर ये
इंसानियत शर्मसार हो गयी
अबोध मासूम सी बच्ची
जिसके स्कूल का भी
आज दिन पहला था
हैवानो का शिकार हो गयी
वो खेल में मग्न थी
तू नशे में चूर था
स्याही सूख नही पाती है पुराने अखबार की,
के खबर आ जाती है एक और बलात्कार की।
जो रेप करे एक बच्ची से,
भोली मन की सच्ची से,
तोड़ दो घर के तालों को,
तोप से उड़ा दो सालों को…
मर्दानगी मुझे कहीं अब सच्ची नही दिखती,
वो फूल की कली उन्हें कच्ची नही दिखती,
दरिंदो को बेटियां किसी की बच्ची नही दिखती,
कफ़न में लिपटी कोई परी अच्छी नही दिखती।
जिस नज़र से नज़ारे उसके हुस्न के देख रहे हो,
नज़रों से उन्ही, खुदा से नज़रे मिला पाओगे?
जिस ज़बान से मासूमियत को उसकी छेड़ रहे हो
ज़बान से उसी, खुदा को जवाब कोई दे पाओगे?