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गौर वर्ण और वृषभ सवारी,
अक्षय पुण्यों की हे अधिकारी,
शस्त्र त्रिशूल माँ श्वेताम्बरी,
ऐश्वर्य प्रदायिनी जय माँ महागौरी।
वो नन्ही गुड़िया भी यही पूछती है
सिर्फ नवरात्रि तक नारी क्यों “देवी” है,
नौ दिन बाद तो फिर से सब वही है
अपमान, शोषण और क्रूरता जब उसी जगह है।
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तुम राम बनो, तो बनकर सीता
देती है वो, अग्नि परीक्षा
तुम कृष्ण बनो, तो बनकर राधा
हर लेती वो, जग की बाधा
नारायण की, नारायणी वो
ब्रह्मा की वो, ब्रह्माणी है
भोले सा तुम, प्रेम करो तो
गौरी सा प्रेम, वो करती है
अपमान यदि हो, उसका तो
काली सा रूप भी, धरती है
बन कर वो, चंडी, काली
दुष्टों को, रण में दलती है….
।। सप्तमी ।।
सदियों बाद फिर इक बार
‘रक्तबीज’ हुंकारा है,
दानव संख्या बढ़ा रहा
मानवता को ललकारा है
नष्ट कर दिया कितनों को
संख्या अब याद नहीं आती,
उठी आंधी विनाश की जो
अब थम क्यूं नहीं जाती ?
नहीं मिलो-जुलो तुम आपस में
सबको वर्ना खा जायेगा,
चंद दिनों में इस धरती को
मनुष्य विहीन बनाएगा ।
प्रकृति बहुत शांत व सुंदर है।
वह तब तक तुम्हे नुकसान नहीं पहुँचाती जब तक तुम उसे आहात नहीं करते।
जिस भाव से तुम उसकी शरण में जाते हो,
ठीक उसी भाव से एक माँ की भांति वह तुम्हारी समस्त कामनाओं को पूर्ण करती है।
परन्तु हमने प्रकृति को बहुत सताया है तभी आज पीड़ा रूप हमें ये
महामारी मिली है।
हे प्रकृति अम्बे में पुत्र हूँ स्वाभविक है कुपुत्र हो सकता हूँ
किन्तु माँ कुमाता नहीं होती अतः कृपाकटाक्ष भजनम माता पहिमाम !
माँ पहिमाम !
मुख विकराली महाकाली कालरात्रि स्वरुप
पाप नाशनी भय को ह्रासनी आई माता रुप
तिमिर रुपी मुखमंडली काया अति विहंगम
सहस्त्र काल सकल विश्व का जैसे है संगम
कोरोना मायावी दैत्य को नष्ट करो हे माता
विधि-विधान से माता करवाऊंगी जगराता
जग जन्नी नाम है जिसका माता उसे बुलाते हैं
आज तेरे दरबार में शीश हम अपना झुकाते हैं।।
सर्व शक्ति महा माई तेरा न कोई आकार।
कृपा दृष्टि करो हे मात !जन-जीवन में मचा हा-हा कार!।
भूल गया तुच्छ प्राणी ये संसार तेरी रचना है।
महामायी की इच्छा बिना पत्ता भी न हिलता है।।
प्रलय को अब शान्त करो माँ! बच्चों को अपने माफ़ करो।
पट खोलो हे भवानी भक्त आस लगाए बैठे हैं।
करुणा बरसा दो मईया हम अरदास लगाएँ बैठे हैं।। जय माता दी।।
Corona ने हिला दिया जीवन है
खाने पीने का पता नहीं
पर घर बैठे बैठे अजीब सी बन रही घुटन है
नवरात्रि के दिन है विनती है आप सब से
कि ये संकट भाग जाए झ्ठ पट से।।।
अंधकार वर्ण,गर्दभ सवारी,
भूत-पिशाचों पर है जो भारी,
सिद्धि द्वार खोलती हे सिद्धिदात्री,
नमन त्रिनेत्र माँ जय कालरात्रि।।
वो जग को चलाने वाली है,हम सबकी पालनहारी है,
कोई कहता है दुर्गा उसको, कोई कहता उसको काली है,
एक बेटी बनकर जन्म लिया, माँ-बाप कि राजदुलारी है,
एक बेटी बनकर इस घर के, आँगन की शान बढ़ा रही है,
अब निकल पड़ी है डोली उसकी, पहचान भी उसकी बदल रही है,
पापा की लाडो थी जो कभी,ये नया घर अब उसकी जिम्मेदारी है,
यू काट दिया जीवन उसने,सोचा की यही तकदीर हमारी है,
जग ने हराना चाहा हरकदम उसे, हर घडी वजूद बचा रही है,
वो जग को चलाने वाली है, वो सबला ही ये नारी है!
शुभ-नवरात्रि🙏