लोग सुनते हैं मन भर,
दूसरों को प्रवचन देते हैं टन भर,
और खुद ग्रहण नहीं करते कण भर!!
Log Sunte MAAN BHAR,
Dusron Ko PRAVACHAN Dete TON Bhar,
Aur Khud Grhan Nahi karte KAN Bhar!
पहचान कहाँ हो पाती है, अब इंसानों की
अब तो गाड़ी, कपड़े और जूते तय करते है
औकात इंसनों की!
अब जब जलेबी की तरह उलझ ही गई है जिंदगी
तो क्यों ना चाशनी में डूबकर मजे ले लिया जायें!
बुराई इस लिए नहीं पनपती की
बुरा करने वाले लोग बढ़ गए हैं,
बल्कि इस लिए बढ़ती है कि
सेहन करने वाले लोग बढ़ गए हैं!
कोई टूटे तो उसे सजाना सीखो,
कोई रूठे तो उसे मनाना सीखो,
रिश्ते तो मिलते है मुकद्दर से,
बस उन्हें ख़ूबसूरती से निभाना सीखो!
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