
Waqt Noor Ko Be-Noor Kar Deta Hai
Chhote Se Jakhm Ko Nasoor Kar Deta Hai
Koun Chahta Hai, Apnon Se Door Hona!
Lekin Waqt Sabko Mazboor Kar Deta Hai..!!
वक्त नूर को बेनूर कर देता है,
छोटे से जख्म को नासूर कर देता है,
कौन चाहता है अपने से दूर होना,
लेकिन वक्त सबको मजबूर कर देता है!
प्लूटो
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पहले नसीहतें होती थीं
कम से कम
एक चिट्ठी लिख देने की
चिट्ठियां बन्द होने पर
हिदायतें हुईं फोन पर बातें कर लेने की
वक्त के साथ फोन भी बंद हो गया
नसीहतें हिदायतें भी
बस एक उम्मीद कायम थी घर बुलाने की
वह भी अब ख़त्म हुई
कल जो मेरे घर के चाँद सूरज थे
अब प्लूटो हो गए..
ये कहानी सच्ची लगती हैं।।
तेरे हाथों पर मेरा नाम लिखा है
दिल की डोर कच्ची लगती है
ये दूरी अच्छी लगती है
मजबूरी अच्छी लगती है
मिलन अब हो नहीं सकता
मांग भी सिंदूरी अच्छी लगती है
मैं कुछ बोल नहीं सकता
वो भी कुछ बोल नहीं सकती
कितना समझाऊँ मैं इस दिल को
कि दास्तान भी पूरी अच्छी लगती है
मुझे वो पहचान न पाए
उन्हें मैं पहचान न पाया
दिल एक दूसरे को कैसे पहचाने
क्या कहानियाँ अधूरी अच्छी लगती हैं
ये दूरी अच्छी लगती है…
हम दोनो साथ थे भारत कश्मीर के तरह
एक साथ चाहता था एक अधूरा ही पास था
हम एक दुसरे से जुदा हुए हिन्दूस्तान और पकिस्तान के तरह
एक वक़्त चाहते दोनो थे पर जित्ना सहा वो बहुत आहत भरा था।
मीलों दूर बैठे लड़के के मुँह से निकले
चंद मामूली शब्द
“सब ठीक हो जाएगा”
और मानो जैसे
सब ठीक हो चुका हो…
किस तरह से फिर तुम्हें भूल जा रहा हूँ मैं,
कल था दूर तुमसे फिर दूर जा रहा हूँ मैं।
खुश रहो तुम सदा जिसके साथ हो खुशी,
हाँ दूर जा रहा हूँ और भूल जा रहा हूँ मैं।।
-ए.के.शुक्ला(अपना है!)