काश मैं लौट जाऊं…
बचपन की उन हसीं वादियों में ऐ जिंदगी
जब न तो कोई जरूरत थी और न ही कोई जरूरी था!
Kash! Mein Laut Jaun Bachpan Ki Un
Hansi Vadiyon Mein… Aye Zindagi!
Jab Na To Koi Jarurt Thi
Aur Na He Koi Jaruri Tha…
जब दिल ये आवारा था,
खेलने की मस्ती थी।
नदी का किनारा था,
कगज की कश्ती थी।
ना कुछ खोने का डर था,
ना कुछ पाने की आशा थी।
Bachpan bhi Kamal ka tha.
Na koi zarurat thi, Na koi zaruri tha.
कुछ अपनी हरकतों से,
तो कुछ अपनी मासूमियत से,
उनको सताया था मैंने,
कुछ वृद्धों और कुछ वयस्कों को,
इस तरह उनके बचपन से मिलाया था मैंने।
माना बचपन में, इरादे थोड़े कच्चे थे।
पर देखे जो सपने, सिर्फ वहीं तो सच्चे थे।
आसमान में उड़ती…
एक पतंग दिखाई दी…
आज फिर से मुझ को..
मेरी बचपन दिखाई दी..
Nice thoughts.