कर्म का फल
व्यक्ति को उसी तरह ढूंढ लेता है,
जैसे कोई बछड़ा
सैकड़ों गायों के बीच अपनी मां को ढूंढ लेता है।
अगर तू मेरा कृष्ण होता मैं होती तेरी राधा ..
तो हमारा इश्क़ भी उनकें जैसा रह जाता आधा..!!
जिंदगी की इस रण मैं
खुद ही कृष्ण ओर खुद ही अर्जुन बनना पड़ता है…,
रोज आपना ही सारथी बन कर
जीवन की महाभारत को लड़ना पड़ता है….
एक दुनिया में एक साथी हों जो बस मेरा हों।
बचपन से यहीं ख्वाब थी, जो अब चला पूरा हों।
एक मिली जीवनसाथी ऐसी, जिसकी तमन्ना थी,
कृष्ण दे हमदोनो को आशीर्वाद इतना बस,
कि हम दोनों जहाँ हों, वहाँ कृष्ण हों और बस कृष्णा हों।
जिंदगी की रश्मों-रिवाज में बड़ा ही फ़र्क होता है
शेर कभी जंगल में , तो कभी जुबां पर होता है
तुमसे यूँ मिलने का वो ख़्याल बुरा तो नहीं था
पर हर बार “समर्थ”, कृष्ण-कन्हिया नहीं होता है
😍😙😍
काली बदरिया में तिरछी नजरिया,
आओ न कान्हा हमारी डगरिया !
नैनन में बस जाओ न कान्हा ,
ऐसे हमे तड़पाओ न कान्हा 🌷
!! अश्कों का समंदर भी अब सूख गया
कान्हा! तुम्हें अब अपने दिल की
नमी दिखाये कैसे !!
🖊सvita
कई हैं दीवाने यहाँ राधा रानी के,
ले चले जो मुझे धाम राधारानी के।
जेब है खाली आज, मैं कैसे जाऊँ,
कोइ है या बस तड़प के रह जाऊँ।
ठाकुर जी की लीला निराली।
जहां नाम हो कृष्ण का वहीं आती खुशहाली।
तुम्हारी बंसी की धुन
पर नाचती है वो
मीरा की तरह,
प्रेम तुमसे करती है वो
राधा की तरह…
अर्जुन के तुम सारथी थे
अब उसके भी सारथी बनो,
तुम्ही उसकी नैया पार लगाओ,
केवट की तरह…
बड़ी शिद्द्त से निभाया तुमने,
अपने हिस्से के मोहब्बत को…
कभी राधा बनकर,
कभी मीरा बनकर,
बस अपने किरदार से शिकायत रही मुझे…
हर बार अपना तो कहा तुमको,
बस अपनाया न गया।
💐हे कान्हा💐
मै दिल मे तेरी मौजूदगी को महफ़ूज कर लेता हूं।
जब भी तन्हा होता हू, तुम्हे महसूस कर लेता हूं..!!
वो तो बनके रहेना चहता था राधा का कान्हा
पर समाज की जिम्मेदारी ने बना दिया उसे परमात्मा
Written by Harshita ✍️✍️
साँवरिया……..
अगर मिलो किसी मोड़ पे,
मुझे देखकर आँखे ना चुरा लेना।
बस तुझे देखा है कहीं,
ऐसा कहकर गले लगा लेना।
अगर अनसुनी हो कोई बात।
तो आंचल खींच कर रुंकवालेना।
हाथ थामे कसमें खा लेना।
कदमों की धुंल को।
माथें से लगाने देना।
बस प्रेम की भाषा बोल।
गले से लगा लेना।
बांसुरी की मनमोहन धुंन।
कानों में पिघला देना।