तू करता वही है, जो तू चाहता है,
होता वही है, जो मैं चाहता हूँ,
तू वही कर, जो मैं चाहता हूँ,
फिर होगा वही, जो तू चाहता है।
Tu Karta Wahi Hai, Jo Tu Chahta Hai,
Hota Wahi Hai, Jo Mein Chahta Hun,
Tu Wahi Kar, Jo Mein Chahta Hun,
Phir Hoga Wahi Jo Tu Chahta Hai!
हे अर्जुन अगर तुम अपना कल्याण चाहते हो,
तो सभी उपदेशों, सभी धर्मों को छोड़ कर
मेरी शरण में आ जाओ, मैं तुम्हें मुक्ति प्रदान करुंगा ।
Hey, Arjun Agar Tum Apna Kalyan Chahte Ho,
To Sabhi Updeshon, Sabhi Dharmo Ko Chhod Kar,
Meri Saran Me Aa Jao, Mein Tumhe Muqti Prdan Karuga
Jis mann mein Radha basi ho,
woh mann Kanha, akela kahan ho…….
Dil dariya hai Radha,
jisme Kanha doobta chala jaye
हां, मिलती है ख़ुशी अब अकेले में;
रहना सीख लिया सबके बिना मैंने।
अज़ीब सी ख़ुशी है अकले जीने में,
राधा नाम मन में बसा लिया मैंने।
🙏Laddu Gopal🙏
Sabse bada darbar tera hai..
tu hi sabka palanhar hai..,
saja de ya mafi..
ab tu hi hamari sarkar hai!!
मैं आज भी कागज़ कोरा होता,
ग़र तुम न स्याही श्यामल होते..।
क्यों होते हो दुःखी आप सब
जब हमारे पास हमारे कान्हा का साथ है।
प्रीत रीत हित नित बखानी भाषा शैली उपयुक्त
रंग अंग संग तरंङ्ग गावत राधिका कृष्ण उन्मुक्त
ब्रज-रज गोधूलि धेनू आवत सांयकाल उपयुक्त
वृषभानु-दुलारी नंदलाल जहूं देखहूं रुप संयुक्त
चौरासी-कोसी ताल-तलैया जमना-तटी प्रयुक्त
रास रचैया मुरली बजैया भावविह्वल भावयुक्त
राधारानी हेमरागिनी आभा चहुंओर विनिर्मुक्त
श्यामल सुमन कृष्ण शोभा होत दृग पाप मुक्त
मैं कृष्ण लिखूं या सुदामा लिखूं।
राधा की तपस्या लिखूं या मीरा की पीर लिखूं।
प्रेम की कोई रीत लिखूं या खुद की कोई प्रीत लिखूं।
दर्द की भाषा लिखूं या तड़प की परिभाषा लिखूं।
मिलन की आस लिखूं या खुद को तेरे पास लिखूं।
गीता का ज्ञान लिखूं या पांडवों का मान लिखूं।
लिखने को है बहुत कुछ पर मैं क्या क्या लिखूँ।
मैं कृष्ण लिखूं या सुदामा लिखूं।
वो रणछोड़ को भजती हैं,
मेरा दिल रुद्र का दीवाना हैं।
शायद इसी करके हमारा,
उनके दिल पर आना जाना है।
वो कहती राधा कृष्ण एक है,
मैं कहता रुद्र अनेक हैं।
वो कहती कृष्ण को दिल मे रखा है,
मैं कहता रुद्र मेरा सखा है।
उसकी ख़ाहिश मेरी होना है,
मुझे भी उसको पाना है,
शायद इसी करके हमारा,
उनके दिल पर आना जाना है।
ये शीतल हवा का सितम हैं !
कान्हा को देर शाम तक,
सखाओ के साथ न खेल पाने का गम हैं।
अब तो किसे कहानियों का,
रात भर दौर हर दम हैं ।
कृष्ण कृष्ण सोचते सोचते, कृष्ण कृष्ण में खो गये;
कृष्ण कृष्ण कहते कहते, कृष्ण कृष्ण के हो गये;
कृष्ण कृष्ण करते करते, कृष्ण कृष्ण में बस गये;
कृष्ण कृष्ण पढते पढते, कृष्ण कृष्ण को पा गये;
कृष्ण कृष्ण सुनते सुनते, कृष्ण कृष्ण में झूम गये;
कृष्ण कृष्ण छूते छूते, कृष्ण कृष्ण में समा गये;
कृष्ण कृष्ण निहारते निहारते, कृष्ण कृष्ण के शरणा गये;
कृष्ण कृष्ण प्रिये प्रिये, कृष्ण कृष्ण के प्रियतम हो गये!
श्री कृष्णः शरणं मम:
न धन दौलत, न राज पाठ,
न ही गांडीव हथियार दे…
देना ही है तोह ओ मेरे ग्वाले…
मुझको बस ये वर चार दे..
पहली मुझको मीरा कर दे…
उत्कंठा प्रेम अपार दे..
दूजा मुझको कर भक्त सुदामा..
बन सखा मेरा..मुझे तार दे..
तीजा मैं तेरा शिष्य बनु..
दर्शन हे परम-अवतार दे..
और चौथी बुढ़िया बेर धरे…
जीवन एक सब्र प्रगाढ़ दे..
और पा ना सकुं जो ये भी गर..
पापी ही..जगत उतार दे..
मुक्ति तेरे हाँथों ही हो…
भले कंश बना कर मार दे..
मेरा रोम रोम तेरा नाम जपे..
एक जन्म मुझे साकार दे..
देना ही हो…ओ मुरलीवाले..
मुझको बस ये वर चार दे..