कहते हैं मुस्कान अनमोल होती है,
सिर्फ 10 रूपये में बिकती है बाबू,
जब पेट के अंदर भूख रोती है!
Kehte Hain Muskaan Anmol Hoti Hai,
Sirf 10 Rupee Mein Bikti Hai… Babu,
Jab Pet Ke Ander Bhookh Roti Hai
लॉकडाउन में पेट पर क्यों नहीं लगाया गया है ताला
अरे साहब गरीबों तक पहुंचाओ भोजन का निवाला
कार्ड का रंग नहीं बताता भूख सुनो-सरकार हवाला
बिना कार्ड धारकों को भी दो भोजन कोई पैसेवाला
उस पर से दानकर्ताओं ने भूखों का सम्मान उछाला
दान दिया तनिक अन्न तस्वीरें जगजाहिर कर डाला
पहनाओ उन सभी धनी को जुते-चप्पलों की माला
सरकारी तंत्र है कोरोनाग्रस्त सरकार का मुंह काला
आधी रात से पंक्तिबद्ध
सोशल डिस्टेंस चरणबद्घ
भूख से मजबूर हैं साहब
हम श्रमिक भिखमंगे नहीं
चूल्हे के सामने से कई दफ़ा मैं लाचार होकर भुखा उठा हूँ
कोई तो उस रोटी का पता बताओ जहाँ वो फेंकी जाती है
परेशानी में खोया हुआ
सड़कों में सोया हुआ
जात-धर्म भूला हुआ
भुखमरी में झूला हुआ
पथराई आँख करती इंतज़ार
सुकड़ी आँत करती गुहार
व्यथित शरीर अकिंचन दरिद्र
खाली बैठा है हुआ बेरोजगार
वो कैसे खाए खाना कहाँ से आए
मन में उमड़ रहे बार बार सवाल
कोई आके मुझसे पूछे मेरे भी हाल!