इंसानियत के धागे कुछ कम पड़ रहे है..
मेरे शहर मेँ कुछ गरीब सर्द मेँ ठिठुर रहे है..!!
Insaniyat Ke Dhage Kuch Kam Pad Rahe Hain,
Mere Sahar Mein Kuch Gareeb Sardi Me Thitur Rahe Hain!
हाथ रगड़ता हुआ कोई कोहरे में नजर आता है
सर्द जकड़ी हवाओं का जब सर्दी का मौसम आता है…
ठण्डी हवा में भी, वो झुलस रहा हैं ..
बच्चा, जो सड़कों पर नंगा बसर कर रहा हैं ..!
इन्सान सिर्फ अपनी जरूरतों के लिए ही दूसरों से प्यार करता है
सर्दी आने पर वह जिस धूप के लिए मरता है
गर्मी आने पर वह उस धूप से ही डरता है।
ये सर्द मौसम और
हाथों में पुरानी यादो की तस्वीर
फर्क सिर्फ इतना है
तस्वीर तो सलामत है मगर
यादें कांच की तरह टूट गयी।
आँखे जैसे ही खोली हर तरफ कोहरे से बादल छा गया
शुरू होते ही दिसंबर का महीना सर्द मौसम का मजा आ गया
आज फिर से,
मुझे ठंडी लगी थी..
पर हाथ सेकने को,
तेरी ऑच ना थी..
कुछ लम्हों की यादें, ग्रीष्म की उन चंद ठंडी फुहारों की तरह होती हैं।
जो कितनी ही धीमी क्यूँ न हों, महसूस बहुत गहरी होती हैं।
शायद किसी ने प्यार से छुआ था तब…
पिघल कर उनकी बाहों में
सर्दी में भी गर्मी का अहसास हुआ था तब ….
मौसम की ये सर्द हवाएं
दोस्तों के संग नुक्कर की चाय
मज़ा और भी आ जाता हैं
पास से जब तू गुज़र जाए
अब दांत भी बजने लगे
शरीर भी किकुड़ने लगे
नहाने से हम डरने लगे
लगता है सर्दी आ गई ।।
अब रोज नहीं नहाते हैं
मुंह धोकर काम चलाते है
अबकी बहुत जल्दी आ गई
लगता है सर्दी आ गई ।।
जब जगते है हर सुबह
तो कुहाशा छाया रहता है
चारो तरफ ठंडी का
साया रहता है ।।
कापतें है शरीर हमारे
दांत जोरो से बजते है
पहनना पड़ता है स्वेटर
तब हम ठंडी से बचते है।।
आग का अब लेना पड़ेगा सहारा
हर कोई इस ठंडी से हारा
करने परेशान बडी जल्दी आ गई
लगता है सर्दी आ गई।।