
एक ग़ज़ल तेरे लिए ज़रूर लिखूंगा,
बे-हिसाब उस में तेरा कसूर लिखूंगा,
टूट गए बचपन के तेरे सारे खिलौने,
अब दिलों से खेलना तेरा दस्तूर लिखूंगा।
Ek Gazal Tere Liye Jarur Likhunga
Be-Hisab Us Mein Tera Kasoor Likhunga
Tut Gaye Bachpan Ke Tere Sare Khilone
Ab Dilo Se Khelna Tera Dastur Likhunga!!
उस से उसे मांगा मैंने हज़ारों बार ऐसे
तनख्वाह चाहता है कोई बेरोज़गार जैसे
– सुप्रिया मिश्रा
कहीं क़ातिल न साबित कर दे दुनिया
मैं ख़्वाबों को दफ़न करने लगा हूँ ।।
“लिख देता हूं अपने दिल के अल्फाज को,
उस बेवफा की याद में;
हर लिखने वाला आशिक शायर नहीं होता !”💔
भूल जाने की शिकायतें आज वो करते हैं,
जिन्हें याद नहीं था मेरा होना भी।
सर पटक कर देखना है एक बार,
इश्क़ को पत्थर कहा था मीर ने,
तुमने मुझको हंसते गाते देखा होगा,
आंखें खोलो,वो तो बस इक सपना होगा
मेरे अंदर जो इक छोटा सा बच्चा था,
वो मरने से पहले कितना तड़पा होगा,
लोग पूछते हैं की लफ्ज कहाँ से लाते हैं,
हम तो बस इस दिल का हाल बतलाते हैं।
जरा सा कलम को कागज पर रुलाते हैं,
जनाब यूँ ही नही हम शायर कहलाते हैं।।