बचपन में मेरे दोस्तों के पास घड़ी नहीं थी…
पर समय सबके पास था!
आज सबके पास घड़ी है
पर समय किसी के पास नहीं!
Bachpan Main Mere Doston Ke Pass
Ghadi Nahi Thi… Par Samay Sab Ke Pass Tha,
Aaj Sabke Pass Ghadi Hai Par Time Kisi Ke Pass Nahi!
वास्तविकता को जानकर,
मेरा भी सपनों से समझौता हुआ,
लोग यही समझते रहे,
लो एक और बच्चा बड़ा हुआ।
कौन कहता है कि…
बचपन वापस नही आता
दो घड़ी अपनी माँ के पास
बैठ कर तो देखो
खुद को बच्चा महसूस ना करो
तो फिर कहना..
Zindagi roj sikhati hai
sabak naye mujhko
Pr lagta hai ki Bachpan me
kisine yeh bataya tha mujhko
माँ-पापा होते मेरे, बाहर दिनभर..
थक जाऊँ, उनका इंतज़ार कर;
वक्त बिताऊँ, गुमसुम मैं घर पर।
माँ हैं मेरी न्यारी ममता की मूरत..
सो जाऊँ रोज, देख सपन सलोने;
उसकी गोदी में, सुकून से सर रखकर।
पापा भी तो मेरे, हैं कितने प्यारे..
बड़े अच्छे, लाते ढेर सारे खिलौने;
पर रोज देर से आते, कितने थक कर।
सब कुछ तो हैं, फ़िर क्यों रहूँ उदास..
तेरे जैसा मैं भी बन पाता मनमौजी;
लतपत धूल-मिट्टी से, लेता खुलकर साँस।
न चाहूँ नर्म बिछौने, न क़ीमती खिलौनें..
प्यारे मम्मी-पापा, समझ ये लेते काश;
या दोस्त होता मासूम, कोई तेरे जैसा!
बाँट सकता जिससे, कुछ दबे दर्द मैं अपने।