दूरियां ही नजदीक लाती हैं,
दूरियां ही एक दूजे की याद दिलाती हैं,
दूर होकर भी कोई करीब है कितना,
दूरियां ही इस बात का एहसास दिलाती हैं!
Dooriyan He Nazdikiyan Laati Hain,
Dooriyan He Ek Dooje Ki Yaad Dilati Hain,
Door Hokar Bhi Koi Kareeb Hai Kitna,
Dooriyan He Is Baat Ka Ehsaas Dilati Hain!
आलम बेवफाई का कुछ इस कदर बढ़ गया,
फासला तय होता रहा और दूरियां बढ़ती गई।
ये दूरियां कहां मायने रखती इश्क में “साहिबा” ,
दिल-ए-मुस्कुराहट के लिए तेरी याद ही काफी है।
मजबूरी गिनाने से बेहतर होता,
तुम दूरी बढ़ा लेते।
सताए गए है ज़माने से कितना सब भूल जाते,
एक बार गर जो, तुम मना लेते।
कितनी आसानी से तुमने मेरी यादों को मिटाया है
मैंने हर पल जिसे जोड़-जोड़ के बनाया है
प्यार आज भी वैसा ही है तेरे लिए..
बदला तो बस ये कि पहले दिखाना पसंद था…
अब वक़्त ने मुझे छुपाना सिखाया है
एक बार तो रोक लेते मेरे अलविदा बोलने पर…
रूठने पर भी तुम्हे मना लूंगा बोला था तुमने,
मैंने तो बस ये सोच कर मुंह फुलाया है
अब तो कुछ दिनों का मेहमान बनकर आता है साथी
पुरानी यादें ताजा कर फिर तन्हा कर जाता है साथी
लिखवा देता तुम्हें भी अपने हाथों की लकीर में,
हो जाते हम एक दूसरे के तकदीर में।
अगर तुम्हारी तरह, खुदा भी हमारा होता।
अरे,… हम भूल गए इस जग को जहां,…
मैं जमीन हूं तेरा, तू आसमां है मेरी।
मिलना हमारा मुमकिन ही कहां था,
बीच में ये जहां जो सारा था।