
मौसम नहीं जो पल भर में बदल जाऊ
जमीन से दूर कहीं और ही निकल जाऊ
पुराने वक्त का सिक्का हॅू…
मुझे फेक न देना, बुरे दिनों में शायद मैं ही चल जाऊ…
Mausam Nahi Jo Pal Mein Badal Jaun
Zameen Se Door Kahi Aur He Nikal Jaun
Purane Waqt Ka Sikka Hun…
Mujhe Feck Na Dena, Bure Dino Mein Shayad
Mein He Chal Jaun….
बरसों बाद आज मैने उन्हे शहर में देखा
उन्हे भूलने की आदत शायद फिर लग चुकी है..
क़ाफ़िला अंदर मेरे सवालों का चलता है,
जवाबों को फ़ुर्सत नहीं के मुलाक़ात कर लें।
इश्क़ की स्याह रातों को सहर कर आया,
मैं होकर तबाह,और भी निखर आया !!
कुछ इस तरह
मेरे ज़ज्बातों का मजाक बनाया उसने
दिल पर नाम लिखकर मेरा
फिर वहां किसी और को बसाया उसने।
ख़ैरियत पूछने पर मुस्कुराता बहुत है..
मोहब्बत कर बैठा है शायद किसी से..!
मैंने नहीं देखा है प्रेम को किसी ‘आकार’ में…
वो ‘खुदा-सा निराकार’ होता होगा !!
“ताउम्र की गुलामी मंज़ूर की थी ना मैंने,
तुम रिहाई चाहते थे….
तो अब मेरे कंगन का,घड़ी में तब्दील हो जाना,
क्यों खलता है तुम्हें…???”