प्रेम में कोई वियोग नहीं होता,
प्रेम ही अंतिम योग है,
अंतिम मिलन है…
बस देखने का ही तो नजरिया है,
कुछ के लिए “श्याम” काला है,
तो कुछ के लिए सांवरिया (कृष्ण) है।
जो अधूरी होकर भी पूरी है
जिसके बिना ये दुनिया सुनी है…
वही तो मेरी राधा कृष्ण की जोड़ी है…!!
इंसाफ़ के लिए हमेशा जबान खोलते है
अनदेखा ना कर मेरे लब्जो से मेरे कान्हा बोलते है
अमीरों की सुखन से इन्हें क्या वास्ता
मेरे अल्फ़ाज़ दर्द सुदामा का बोलते है।
हाँ मैं बनूँगी राधा, ना तोडूंगी कोई वादा।
आजीवन ब्रह्मचारी रहूंगी, पि लुंगी विरह की ज्वाला ।।
पर क्या तुम भी, मेरे कान्हा बन सकोगे।
उसके आत्मिक प्रेम सा, कण शेष भी कर सकोगे ।।
क्या तुम भी छोड़ सकोगे, अपने आत्मीय कण को ।
क्या तुम भी छोड़ सकोगे, नंदगाव की बंसी को।।
त्याग सकोगे क्या तुम भी, सुख अपना धर्मार्थ को।
दे सकोगे क्षण क्षण भी क्या, तुम अपने पुरुषार्थ को।।
अरे मूरख मेरा कान्हा तो, स्वयं ही महाकाल था।
काल भी उसको निगल सके, ऐसा भी ना वो कराल था।
क्या तुम इस पद पर रहते हुए, सहज ही मर सकोगे।
क्या तुम भी मेरे प्रिय सामान, मेरे कान्हा बन सकोगे।।
चाहा उसने सदैव जिसे, उसे वह कभी भी ना मिली।
उसने पीढ़ियो के शिक्षार्थ हेतु, संघर्ष की जिंदगी चुनी।।
क्या तुम सोचते हो मेरे बिना, क्या सुख से जिया था वो।
क्या मेरी रासलीला के स्मरण में, दिन रात क्यों तड़पा था वो।
अरे वह स्वयं भगवान् था, जो कुछ चाहता कर सकता था।
पल भर में अपना काम करके, फिर से नंदगाव बस सकता था।
परन्तु उसने तुम्हे मार्ग दिखने हेतु, संघर्ष का जीवन जिया।
धर्म की शिक्षा हेतु उसने भी, संघर्ष का हलाहल पिया।।
क्या तुम धर्म हेतु अबोध रूप में, अपने गृह को तज सकोगे।
क्या तुम भी द्वारकाधीश ना होकर, मेरे कान्हा बन सकोगे
:- मृत्युंजय पांडेय “रूद्र”
मुझे मिला नहीं मौका अभी,
कि कुछ कर गुजर जाऊँ,
हाथ पकड़ के
निकल दे पार सांवरिया,
कि मैं भी तेरा शुक्र मनाऊँ।।
Rasta to dekho meri mahobbat ka,
Apni jaan se saza rakha hai
Phoolo se puchho ki kitne bad naseeb hai vo, mene kanha ko unse juda rkha hai।
सुनो कान्हा,
जिस पल कोई आस न हो,
उस पल भी तुझसे आस बाकि हो !
मुझमे तेरी एक साँस बाकि हो !
है मेरे मोहन मेरे गिरधारी
मैं तो बाट निहारु तिहारी
कभी दिन मे मैं तुम्हें निहारी
कभी रात मे दिखे है मुझे छाया तुम्हारी
है मेरे मोहन मेरे गिरधारी
बाट कब तक निहारु तिहारी
मोहे असल मे दरस न होए तुम्हारे
मैं तो जग से हारी
जग कहे तोहे क्यों न दिखे तोहे तेरे बिहारी
लगी है आस तुम्हारी
कभी तो मिलोगे मुरलीधारी
तेरी भोली सी सूरत साँवरिया..
मेरे दिल में बसी जा रही है..
अब तो पहले से भी कहीं ज़्यादा..
न जाने क्यों याद आ रही है 💛
मौका प्यार का इजहार करने का,
वरना डर तो हमें भगवान का भी नहीं लगता।
पर क्या करे डरना पड़ता है
क्योंकि हम भक्ति जो श्री कृष्ण की करते है।
सत्य मान
जो राम था, जो कृष्ण था
वह ही इस शरीर में रामकृष्ण हैं..!
तुम कृष्ण जैसे हो सबके दिल को भाते हो।
मैं राधा जैसी हूं सिर्फ तुमसे दिल लगाती हूं।।
प्रीत में तेरी कान्हा मैं अब पागल सी होने लग गयीं हूँ
बंसी की धुन सुनके मधुर मैं दिन रात थिरकने लग गयीं हूँ।
Radha krishn ki yaari
Sare jag se nyaari,,,
Radha ke sang raas rache
Lage sabko pyaari,,,
मेरे कृष्ण के तो अवतार ही निराले हैं
पैरों में पायल, हाथों में बंसी,
मोर पंख संग बाल घुंघराले हैं
बचपन में यशोदा मैया को,
शरारतों से बहुत सताया था
जवानी में गोपिकाऔं को,
विरह की पीड़ा से रुलाया था
दो युगौं ने कृष्ण से प्रेम किया,
एक राधा थी, तो कलयुग में मीरा थी
पर दोनों ही प्रेमिकाओं ने,
एक दूसरे से ईर्ष्या ना की
मेरे कृष्ण के हाथों में सुदर्शन चक्र था,
तो मुख में गीता का ज्ञान
जिसे सुनने वाला अर्जुन जैसा योद्धा था,
और कहने वाला विष्णु जैसा भगवान।
आज भी किसी न किसी रूप में,
मेरा कान्हा मेरे संग है।
मेरी मां हो, मेरे बाबा हो,
हर रूप में कान्हा के रंग हैं।
करके बच्चों सी नादानी
हो गई मैं जग से अंजानी,
अपने ही प्रेम से बेगानी
हो गई मैं भी कृष्ण की दिवानी…!🌹