बच्‍ची से बलात्‍कार होता रहा!! Rape Balatkar Quotes in Hindi Status

Rape Balatkar Quotes in Hindi Status
Rape Balatkar Quotes in Hindi Status

दरिंदगी देखकर इंसानों की
जानवर भी शर्मसार हो रहे हैं,
ये कैसा देख बनाया हमने जहां
हर रोज बलात्कार हो रहे है!


Balatkar Karke De Rahe Hain Rape Quotes in Hindi Status
Balatkar Karke De Rahe Hain Rape Quotes in Hindi Status

मर्दों की मर्दानगी भी आज एक
अलग रूख ले रही है
दिमागी नपुंसकता की मिसाल
बलात्कार करके दे रही है


इत्तेफाक ही तो है, खुदारा, और क्‍या है!
बच्ची की सिसकियां चल रहीं और मानवता क्‍या है
बच्‍ची से बलात्‍कार होता रहा सरे राह
लोग बोलते रहे छोड़ो कौन मुसीबत ले अपना क्‍या है
राज भर बच्‍ची तड़पती मर गई और यहां रहमत क्‍या है


नहीं थमती दासतां, जिस्म-औ-रूह ज़ार करने की,
और बाकी है क्या, दरिंदगी की हद पार करने को,

आग फिर उठी हैं, अंगारे दहके हैं आज, चारों तरफ
काट दो उंगलियाँ, जो उठे इज्ज़त तार करने को,

वो बेटी किसकी थी, मत पूछ मुझसे ऐ रहगुज़र
तैयार रह, उन नामुरादों के टुकड़े हज़ार करने को!

आबरू जाने कितनी, हर रोज़ कुचली जाती हैं,
नोंच ले वो गंदी नजरें, उठे जो गंदे वार करने को,

क्यों हो झिझक, क्यों डर बेटियों की आँखों में,
ज़रूरत अब, खुद हाथ अपने हथियार करने को !


मेरे जिस्म के चिथड़ों पर लहू की नदी बहाई थी
मुझे याद है मैं बहुत चीखी चिल्लाई थी
बदहवास बेसुध दर्द से तार-तार थी मैं
क्या लड़की हूँ,
बस इसी लिये गुनहगार थी मैं

कुछ कहते हैं छोटे कपड़े वजह हैं
मैं तो घर से कुर्ता और सलवार पहनकर चली थी
फिर क्यों नोचा गया मेरे बदन को
मैं तो पूरे कपडों से ढकी थी

मैंने कहा था सबसे
मुझे आत्मरक्षा सिखा दो
कुछ लोगों ने रोका था
नहीं है ये चीजें लड़की जात के लिए कही थी

मुझे साफ-साफ याद है
वो सूरज के आगमन की प्रतीक्षा करती एक शांत सुबह थी
जब मैं बस में बैठकर घर से चली थी
और उसी बस में मैं एक और निर्भया बनी थी

वो घिनौने चेहरे मुझे साफ-साफ याद हैं
जिन्होंने मेरा दुपट्टा खींचा था
मैं उनके सामने गिड़गिड़ाई थी
बस में बैठे हर इंसान से मैंने
मदद की गुहार लगाई थी

जिंदा लाश थे सब,
कोई बचाने आगे न आया था
आज मुझे उन्हें इंसान समझने की अपनी सोच पर शर्म आयी थी
फिर अकेले ही लड़ी थी मैं उन हैवानों से
पर खुद को बचा न पायी थी

उन्होंने मेरी आबरू ही नहीं मेरी आत्मा पर घाव लगाए थे
एक स्त्री की कोख से जन्मे दूसरी को जीते जी मारने से पहले जरा न हिचकिचाए थे
खरोंचे जिस्म पर थी और घायल रूह हुई थी
और बलात्कार के बाद मैं चलती बस से फेंक दी गयी थी

उन दरिंदों के चेहरे ढक दिये गए, ताकि वो बदनाम न हो जाएं
और मैं बेकसूर होकर भी अपना नाम बदलने को मजबूर हूँ
ये दरिंदे आजाद हो जाएंगे कुछ साल बाद
पर आज के बाद मैं इज्जत की जिंदगी से कोसों दूर हूँ

बदनामी के डर से अब घर छोड़ना होगा मुझे
हर पल अब समाज के डर से चार दीवारों में छुपना होगा मुझे
धीरे-धीरे भले ही लोग भूल जाएंगे मुझे
पर समाजवाले न कभी अपनाएंगे मुझे
बदन के घाव भरेंगे पर आत्मा छलनी रहेगी मेरी

चीखें तो आँसुओं में दब जाएंगी
पर
मुर्दा आत्माओं के इस समाज में
ये जिंदा लाशों की कहानी
बस यूँ ही चलती रहेगी
बस यूँ ही चलती रहेगी…

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